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लेखनी कहानी -01-Jun-2023 कातिल कौन

भाग 20 
जिला और सत्र न्यायालय में सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी की जोरदार बहस चल रही थी कि अचानक घड़ी ने एक बजे का घंटा बजा दिया । कोर्ट का लंच टाइम हो गया था । वैसे तो आधिकारिक लंच टाइम 1.30 से 2.0 PM है लेकिन अनधिकृत रूप से लंच टाइम 1 बजे से 2.30 बजे तक चलता है । जज साहब डायस से उठकर पहले अपने चैंबर में जाते हैं । चैंबर में वे कुछ जरूरी कागजों यथा जमानत आदेश, हाईकोर्ट को भेजे जाने वाले पत्र , नकल आदि पर हस्ताक्षर करते हैं और फिर गाड़ी लगवाने का आदेश दे देते हैं । 

जब तक ड्राइवर गाड़ी लगाता है तब तक वे घर पर सूचना दे देते हैं कि वे लंच के लिए आ रहे हैं । फिर जज साहब लंच के लिए अपने घर जाते हैं । घर पहुंचते पहुंचते उन्हें 1.30 बज जाता है । उसके बाद जज साहब 2 बजे तक लंच लेते हैं । लंच के बाद थोड़ा सा आराम करना अति आवश्यक है । डायस पर बैठकर तीन तीन घंटे तक बहस सुनना कोई छोटा काम है क्या ? और सबसे बड़ी बात यह है कि आप डायस पर बैठे बैठे सो भी नहीं सकते हैं । क्लास में लैक्चर सुनना अलग बात है । वहां सोने की आजादी है पर यहां ऐसी आजादी बेचारे जजों को नहीं है इसलिए उन्हें लंच में आराम करने की सख्त आवश्यकता है । यदि वे आराम नहीं करेंगे तो लंच के बाद कोर्ट में बैठकर बाकी की बहस कैसे सुनेंगे ? और दूसरा काम कैसे करेंगे ? वे महज 15 से 20 मिनट की ही "लुढ़की" लगाते हैं  । इतनी सी झपकी से ही उनका शरीर तरोताजा हो जाता है । उसके बाद वे फिर कोर्ट पहुंच जाते हैं और 2.30 बजे से डायस पर विराजमान होकर फिर से बहस सुनने लग जाते हैं । 

सरकारी नौकरी के ठाठ भी निराले हैं । तभी तो लोग सरकारी नौकरी के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं । पैसा देते हैं, जैक लगवाते हैं । और तो और परीक्षाओं में भी चीटिंग करते हैं । सरकारी नौकरी से इतर न्यायपालिका के ठाठ तो और भी शानदार हैं । जिम्मेदारी कुछ नहीं केवल अधिकार ही अधिकार हैं । गलत फैसला हो भी जाए तो कोई सजा नहीं । भ्रष्टाचार की कोई जांच नहीं । सरकार के बड़े से बड़े अधिकारी को बुलाकर उसे कोर्ट में घंटों खड़ा कर उसे धमकाने का अधिकार केवल कोर्टों को ही मिला हुआ है । यहां जजों को संपत्ति की सूचना भी नहीं देनी पड़ती है और न ही सूचना का अधिकार कानून यहां लागू होता है । न्यायपालिका में जितने ठाठ हैं उतने तो स्वर्ग में भी नहीं हैं । 

अब तो लोग "तपस्या" करके "वरदान" के रूप में भगवान से सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की प्रार्थना करते हैं । लेकिन भगवान भी लाचार होकर कह देते हैं "वत्स ! यह वर देना मेरे लिए संभव नहीं है । सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जज केवल सुप्रीम कोर्ट का "कॉलेजियम" ही बना सकता है , मैं भी नहीं बना सकता हूं कोई जज  । अगर तुम्हें वहां का जज बनना है तो सुप्रीम कोर्ट में पहले कभी मुख्य न्यायाधीश रहे किसी व्यक्ति के परिवार में जन्म लेना होगा, तभी वहां जज बन सकते हो" । 

ठीक 2.30 PM पर जज साहब डायस पर आ बैठे । न्यायालय की कार्यवाही पुन: प्रारंभ कर दी गई । बहस के दौरान सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी की काबिलियत का लोहा सब लोग मान चुके थे । वैसे तो आमतौर पर सरकारी वकीलों की छवि ऐसी बनी है कि वे ना तो कानून जानते हैं और न ही सरकार की सही पैरवी करते हैं पर नीलमणी त्रिपाठी ने इन सब आरोपों को अपने कानूनी ज्ञान, परिश्रम और अनुभव से ध्वस्त कर दिया । उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि बहस कैसे की जाती है ?

जज साहब की अनुमति से उन्होंने बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा 
"सर, सक्षम के पास कत्ल करने का मोटिव भी था , पैसे की व्यवस्था भी कर ली गई थी और कत्ल करने वाला एक हत्यारा भी उसने हायर कर लिया था । अब तो कत्ल के कार्य को अंजाम देना ही बाकी रह गया था । इसके लिए सक्षम ने एक फुल प्रूफ योजना तैयार की थी । 

सक्षम को पता था कि 30 मई को अनुपमा महिला सशक्तिकरण की एक वर्कशॉप में भाग लेने के लिए चंडीगढ जा रही है । उसे यह भी पता था कि 31 मई को अक्षत का जन्मदिन है । यद्यपि वह जानता था कि अनुपमा की फ्लाइट चंडीगढ से 1 जून को सुबह 7 बजे की है पर वह जानता था कि अनुपमा 31 मई को ही नोएडा आ जायेगी । आखिर उसे अक्षत का जन्म दिन भी तो नोएडा में मनाना था । उस दिन एक साथ दोनों की हत्या की जा सकती थी ।  इस अवसर को सक्षम अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था इसलिए उसने 31 मई को ही उन दोनों को निपटाने का बंदोबस्त कर लिया था । 

त्रिपाठी ने कोर्ट के समक्ष अक्षत का जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा "योर ऑनर, अक्षत के जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार उसका जन्म दिन 31 मई को है । उस दिन अनुपमा को यहां नोएडा में होना चाहिए था । सक्षम ने अनुपमा की राह आसान करने के लिए उसे दिन में एक मैसेज किया "आज मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ एक पार्टी में रहूंगा और कल सुबह घर आऊंगा" । इस मैसेज को पढ़कर अनुपमा की बांछें खिल गई थीं । अब नोएडा जाकर अक्षत का जन्म दिन मजे से मनाया जा सकता था । 

वर्कशॉप अपरान्ह चार बजे समाप्त हो गई थी । वह वहां से तुरंत एक टैक्सी से नोएडा के लिए चल दी । ये उस होटल के रजिस्टर की कॉपी है जिस पर 31 मई को शाम 4.30 बजे चैक आउट टाइम डाला हुआ है और ये सीसीटीवी फुटेज हैं जिनमें अनुपमा होटल से बाहर जाती दिख रही है । इसके साथ साथ मैं एक गवाह मिस रजनी को भी अदालत में पेश करने की अनुमति चाहता हूं" नीलमणी त्रिपाठी ने बड़ी आशा के साथ जज साहब की ओर देखा । 
"इजाजत है" जज साहब ने उन्हें अनुमति दे दी । 

दरबान फिर से "मिस रजनी अदालत में हाजिर हो" की आवाज लगाने लगा । रजनी गवाह के लिए बने एक बॉक्स में आकर खड़ी हो गई । त्रिपाठी जी उससे पूछताछ करने लगे 
"आपका नाम" ? 
"मिस रजनी वर्मा" 
"आप अनुपमा को कैसे जानती हैं" ? 
"अनुपमा मैडम एक NGO "उन्नयन" चलाती हैं और मैं इसमें काम करती हूं इसलिए अनुपमा मैडम को जानती हूं" 
"31 मई को क्या हुआ था, कोर्ट को बताइए" 
"सर, 31 मई को लंच में मैं अनुपमा मैडम से मिली थी तब हमारे वापस जाने की बात चली थी । अनुपमा मैडम ने मुझसे कहा था कि हमारे लिए उन्होंने "रतलाम एक्सप्रेस" में रिजर्वेशन करवा दिया है । जब मैंने उनसे पूछा कि वे कब और किस ट्रेन से जाऐंगी तब उन्होंने कहा कि वे 1 जून को सुबह 7 बजे की फ्लाइट से दिल्ली जाऐंगी" 
"फिर क्या हुआ" ? 
"वर्कशॉप चार बजे खत्म हो गई थी । हम सब लोग चलने की तैयारी करने लगे । मैं जल्दी ही तैयार होकर होटल के काउंटर पर आ गई और चैक आउट कर के एक कोने में बैठकर बाकी साथियों का इंतजार करने लगी" 
"फिर क्या हुआ" ? 
"इतने में अनुपमा मैडम अपना सामान लेकर होटल के काउंटर पर आईं और उन्होंने लगभग साढे चार बजे चैक आउट कर लिया । मुझे आश्चर्य हुआ कि मैडम को तो 1 जून को सुबह सात बजे फ्लाइट से जाना था तो आज ही क्यों वापस जा रही हैं ? फिर मैंने अनुपमा मैडम को एक टैक्सी में बैठकर जाते हुए देखा" । 
"दैट्स ऑल मी लॉर्ड् । इन गवाहों और होटल के रजिस्टर की कॉपी से स्पष्ट है कि अनुपमा 31 मई को ही अपरान्ह साढे चार बजे चंडीगढ से नोएडा के लिए एक टैक्सी से चल पड़ी और वह लगभग 9 बजे अपने घर पर आ गई । 

अनुपमा को पहले से ही पता था कि आज सक्षम घर पर नहीं है और अक्षत उसका इंतजार कर रहा है । अक्षत ने अनुपमा का घर पर एक चुंबन से स्वागत किया और दोनों एक दूसरे की बांहों के झूले में झूल गये । अनुपमा ने अक्षत से कहा कि वह अभी थोड़ी देर में नहाकर आती है तब तक वह एक बढिया सा केक मंगवा ले , फिर मस्ती से जन्म दिन मनाऐंगे और केक काटेंगे । अक्षत ने एस एस टी बेकरी को एक दो पौण्ड के केक का ऑर्डर कर दिया । अनुपमा को चॉकलेट वाला केक पसंद है इसलिए अक्षत ने वही केक ऑर्डर किया था । लगभग 10 बजे एस एस टी बेकरी के डिलीवरी मैन ने उनके घर पर केक डिलीवर कर दिया । मैं इस संबंध में एस एस टी बेकरी के डिलीवरी मैन रणदीप को विटनेस बॉक्स में बुलाने की अनुमति चाहता हूं" । त्रिपाठी ने जज साहब से आग्रह किया 
"अनुमति दी जाती है" 

दरबान एक बार फिर खड़ा हुआ और "अदालत में रणदीप हाजिर हो" की आवाज लगाने लगा 

वहां मौजूद रणदीप विटनेस बॉक्स में आ गया और सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी उससे पूछताछ करने लगे 
"आपका नाम" ? 
"रणदीप हुड्डा" 
"कहां काम करते हो" 
"एस एस टी बेकरी में डिलीवरी मैन का काम करता हूं" 
"31 मई की रात लगभग 10 बजे तुमने क्या कोई केक नोएडा स्थित कस्तूरबा लेन के मकान नंबर 104 में डिलीवर किया था" ? 
"साहब हम तो डिलीवरी मैन हैं । हमारा काम केक डिलीवर करना ही है तो उस दिन भी हमने कोई केक आपके द्वारा बताए पते पर डिलीवर किया ही होगा" 
"ऐसे नहीं , अच्छे से याद करके बताओ कि तुमने वह केक डिलीवर किया या नहीं" ? 

रणदीप बहुत देर तक याद करता रहा फिर बोला "साहब जी, हम हर रोज कम से कम पचास केक डिलीवर करते हैं । ऐसे हर केक की डिलीवरी को कैसे याद रखेंगे ? जब आप कह रहे हैं तो सही ही कह रहे होंगे आखिर इतने बड़े वकील जो हैं आप" । 

रणदीप की बातों से अदालत में हंसी का फव्वारा छूट गया । कोई कोई गवाह ऐसा आ ही जाता है जो बोझिल और उबाऊ अदालती प्रक्रिया में अपने बयानों और अपने हाव भावों के द्वारा हास्य रस की बौछार कर देता है जिससे अदालती प्रकिया में जान बनी रहती है । रणदीप की बातों पर जज साहब भी मुस्कुरा दिये थे इससे नीलमणी त्रिपाठी जी आगबबूला होकर भड़क गए और वे रणदीप पर रौब जमाते हुए बोले 
"देखो, यह फोटो उस दिन के केक का है । इसे देखकर बताओ कि यह केक तुमने डिलीवर किया या नहीं" ? 

रणदीप उस फोटो को बहुत देर तक देखता रहा फिर बोला "हां साहब, याद आ गया । हमने ही यह केक उस दिन डिलीवर किया था" । 
"अच्छा , ठीक है । अब तुम जा सकते हो" । नीलमणी प्रसन्न है गया । 

"योर ऑनर, केक आने के बाद अक्षत ने उसे डाइनिंग टेबल पर सजा दिया । अनुपमा तब तक तैयार होकर आ गई थी । उसने अक्षत की पसंद की एक पिंक कलर की बहुत खूबसूरत साड़ी पहनी थी । उस साड़ी में वह एक परी सी लग रही थी । अक्षत ने एक गुलाब का फूल अनुपमा के बालों में लगाया और उसके बालों को चूम लिया । उसके बाद दोनों केक काटने लगे । 

घर में "हैप्पी बर्थ डे टू यू" का गीत बजने लगा । अनुपमा ने थोड़ा सा केक अक्षत के मुंह पर लगा दिया । अक्षत भी कब पीछे रहने वाला था । उसने अपने गालों को अनुपमा के गालों से रगड़ कर अपना बदला चुकता कर दिया । फिर दोनों ने मिलकर डांस किया और केक खाया । अक्षत ने किसी होटल से बर्गर , पीजा वगैरह मंगवा लिया था जिसे दोनों ने मिलकर खा लिया । 
इसके बाद दोनों ने वह "आवश्यक कार्य" किया जिसका दोनों को बहुत देर से इंतजार था । घर पर उन दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं था इसलिए निर्विघ्न रूप से दोनों का "मिलन" संपन्न हो गया जिसके कारण बैडशीट पर कुछ निशान बन गये थे । 

आदमी अपनी बुद्धि से बहुत अच्छा सोचता है पर होता वही है जो होना होता है । वह रात बड़ी मस्त थी । अनुपमा और अक्षत दोनों खूब मौज मस्ती कर रहे थे पर अचानक इसमें एक ट्विस्ट आ गया । उन दोनों को पता नहीं था कि उस घर में मौत दबे पांव आ रही थी । वे दोनों प्यार की वादियों की सैर कर रहे थे और मौत धीरे धीरे उनके करीब आती जा रही थी" 

(अगले अंक में आप पढेंगे कि अक्षत और अनुपमा को मारने आया व्यक्ति किस तरह खुद ही मौत का शिकार हो गया ) 

श्री हरि 
16.6.2023 

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10 Comments

Abhilasha Deshpande

05-Jul-2023 03:11 AM

उम्दा भाग

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Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Jul-2023 09:47 AM

बहुत बहुत आभार आपका 🙏🙏

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Gunjan Kamal

03-Jul-2023 09:29 AM

बेहतरीन भाग

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Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Jul-2023 09:47 AM

🙏🙏

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Madhumita

20-Jun-2023 04:44 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Jul-2023 09:46 AM

🙏🙏

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